भारत की आईटी क्रांति के एक दिग्गज अब विवादों के केंद्र में हैं। इंफोसिस के सह-संस्थापक और पद्म भूषण से सम्मानित क्रिस गोपालकृष्णन पर जातिगत भेदभाव और ‘हनी ट्रैप’ साजिश से जुड़े आरोप लगे हैं।
Kris Gopalakrishnan परिचय:
भारत की आईटी क्रांति का पर्याय बन चुके क्रिस गोपालकृष्णन आज सुर्खियों में हैं, लेकिन इस बार कारण उनकी पेशेवर उपलब्धियां नहीं, बल्कि गंभीर आरोप हैं। उन्हें और 17 अन्य लोगों को एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम के तहत बुक किया गया है। बेंगलुरु में एक अदालत के निर्देश पर दर्ज यह मामला दुर्गप्पा नामक व्यक्ति द्वारा लगाए गए आरोपों पर आधारित है।
दुर्गप्पा, जो बवी जनजाति से आते हैं, का आरोप है कि 2014 में उन्हें एक ‘हनी ट्रैप’ मामले में फंसाकर IISc से बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें जातिगत गालियों और धमकियों का सामना करना पड़ा।
यह मामला संस्थागत शासन में प्रसिद्ध व्यक्तित्वों की भूमिका और कार्यस्थलों पर जातिगत भेदभाव जैसे मुद्दों पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
Kris Gopalakrishnan Booked : केस की पृष्ठभूमि:
आरोप:
दुर्गप्पा, जो पहले IISc के सेंटर फॉर सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी में फैकल्टी के रूप में कार्यरत थे, ने आरोप लगाए:
- उन्हें 2014 में एक साजिश के तहत ‘हनी ट्रैप’ मामले में फंसाया गया।
- उन्हें उच्च अधिकारियों द्वारा जातिगत भेदभाव और धमकियों का सामना करना पड़ा।
- उनकी बर्खास्तगी एक योजनाबद्ध कार्रवाई का नतीजा थी।
कानूनी प्रगति:
- यह मामला बेंगलुरु के सदाशिव नगर पुलिस स्टेशन में 71वें सिटी सिविल और सेशंस कोर्ट के निर्देश पर दर्ज किया गया।
- शिकायत में एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम के उल्लंघन का उल्लेख है।
- क्रिस गोपालकृष्णन और पूर्व IISc निदेशक बालाराम के अलावा, आरोपियों में गोविंदन रंगराजन, संध्या विश्वेश्वरैया, श्रीधर वारियर और अन्य प्रमुख फैकल्टी सदस्य शामिल हैं।
Kris Gopalakrishnan Booked Case : शिकायतकर्ता की प्रोफाइल:
- दुर्गप्पा: बोवी जनजाति से संबंधित हैं और IISc में फैकल्टी सदस्य के रूप में कार्यरत थे।
- उनका कहना है कि उनकी जातिगत पहचान के कारण उन्हें भेदभाव का शिकार बनाया गया।
कौन हैं क्रिस गोपालकृष्णन?
क्रिस गोपालकृष्णन भारत के सबसे सम्मानित उद्यमियों में से एक हैं और इंफोसिस के सह-संस्थापक हैं, जो भारत की वैश्विक आईटी छवि को परिभाषित करता है।
पेशेवर उपलब्धियां:
- 2007-2011 के दौरान इंफोसिस के सीईओ और एमडी रहे।
- 2011 से 2014 तक इंफोसिस के वाइस चेयरमैन के पद पर कार्य किया।
सम्मान और उपलब्धियां:
- 2011 में व्यापार और उद्योग में योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित।
- 2013-14 में भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के अध्यक्ष चुने गए।
- 2014 में दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
शैक्षणिक योग्यता:
- आईआईटी मद्रास से भौतिकी और कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री।
- भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियर्स अकादमी (INAE) के फेलो।
क्रिस गोपालकृष्णन अपनी परोपकारी पहलों और शिक्षा तथा तकनीकी अनुसंधान में योगदान के लिए जाने जाते हैं। लेकिन IISc के ट्रस्टी बोर्ड के सदस्य के रूप में उनकी भूमिका अब सवालों के घेरे में है।
सार्वजनिक प्रतिक्रिया और मीडिया रुचि:
Google Trends पर उछाल:
- “Kris Gopalakrishnan Booked” खोज शब्द ने 27 जनवरी को तेज वृद्धि दर्ज की और यह ट्रेंड अब भी जारी है।
- कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और झारखंड में सबसे अधिक खोजे गए।
- संबंधित खोजें: एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम और ‘हनी ट्रैप’ के आरोप।
प्रतिष्ठा पर प्रभाव:
- गोपालकृष्णन जैसी शख्सियत के लिए ये आरोप उनके उज्ज्वल करियर पर सवालिया निशान लगाते हैं।
- चर्चा का मुख्य बिंदु: संस्थानों में जाति, सत्ता और शासन की भूमिका।
IISc की चुप्पी:
- भारत के शीर्ष अनुसंधान संस्थानों में से एक IISc ने इन आरोपों पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
व्यापक प्रभाव:
यह मामला सिर्फ किसी एक व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि बड़े मुद्दों को उजागर करता है:
शैक्षिक संस्थानों में जाति:
शैक्षिक क्षेत्रों में जातिगत भेदभाव के आरोप भारत में नए नहीं हैं। यह मामला समानता सुनिश्चित करने के लिए सख्त नीतियों और निगरानी की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
प्रमुख व्यक्तित्वों की जवाबदेही:
क्रिस गोपालकृष्णन जैसी प्रसिद्ध हस्तियों की भागीदारी संस्थागत शासन में उनकी जवाबदेही पर सवाल उठाती है।
न्यायिक प्रक्रिया:
अब यह मामला न्यायपालिका की क्षमता की परीक्षा है कि वह प्रणालीगत भेदभाव और शक्ति के दुरुपयोग के आरोपों को कैसे संबोधित करती है।
Kris Gopalakrishnan Booked Case निष्कर्ष:
क्रिस गोपालकृष्णन का गौरवशाली करियर भारत की आईटी क्रांति का प्रतीक है। लेकिन, यह मामला उनकी विरासत में एक चिंताजनक अध्याय जोड़ता है। देश अब इस जांच की ओर देख रहा है, यह देखने के लिए कि क्या न्याय होगा या आरोप गलत साबित होंगे।
आगे क्या होगा?
यह मामला भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों में शक्ति और जवाबदेही की धारणाओं को फिर से परिभाषित कर सकता है और भविष्य के लिए महत्वपूर्ण सबक प्रदान कर सकता है।